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Kiran Bala

Abstract

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Kiran Bala

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प्रेमी

प्रेमी

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तुम कहते हो, मैं प्रेमी हूँ ,

प्रेम में समर्पित हो जाऊंगा

देनी पड़ी यदि जान तो,

वह भी मैं दे जाऊंगा ।


क्या तुम देश-प्रेमी हो !

या फिर हो मानवता के प्रेमी ।

क्या तुम विश्व प्रेमी हो !

या फिर हो ईश्वर के प्रेमी ।


छोड़ मन की भटकन को,

दिल से पूछो बात जरा ।

क्या तुम सर्वव्यापी प्रेमी हो,

या फिर हो प्रेमी एकला ।


प्रेमी नहीं स्वार्थी हो तुम,

मतलब से फिरते हो सदा ।

प्रेमी होते यदि सचमुच तो,

न होते दंगे फिर यहाँ ।


अरे !प्रेमी तो बस वो थे,

जो मिट गए देश की आन पे ।

गुलामी से सबको मुक्त कराने,

कर गए थे न्योछावर प्राण वे ।


एकल प्रेमी होने का,

है तुमको अभिमान बड़ा ।

बड़ी शान से कहते फिरते हो,

मैं हूँ प्रेमी अडिग खड़ा ।


वो प्रेमी ही क्या जिसमें ,

वसुधैव-कुटुम्बकम का न भाव भरा ।

सीख सके तो सीख प्रकृति से,

परकाज हित जो जीये सदा ।


क्या अब भी लगता है तुमको,

तुम सचमुच के प्रेमी हो !

प्रेमी नहीं लगते तुम मुझको,

इस जग के तुम बैरी हो ।








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