प्रेम
प्रेम
माँ को देखा था
किसी भी यात्रा के मध्य
आई नदी में
सिक्का डालते
अर्धमीलित आंखों और होठों में
कुछ बुदबुदाते
माँ क्या बुदबुदाती थी नहीं
मालूम था
फिर तुम मिले
और उसके बाद पहली यात्रा के मध्य
आई नदी को देख
अनायास ही मुट्ठी में न जाने कैसे
आ गया एक सिक्का
और सिक्का नदी में डालते
स्वतः ही मूँद गए नेत्र
और उभरा तुम्हारा चेहरा
और उस दिन जाना.....मां क्या बुदबुदाती थी
