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Rupesh Kumar

Romance

3.5  

Rupesh Kumar

Romance

प्रेम

प्रेम

1 min
280



प्रेम के बोल पर हम ,

ठगे जा रहे हैं ,

बिना सोचते समझते ,

चले जा रहे हैं।


उनका इरादा क्या है ,

हम ना जानते अभी भी ,

उनकी मुस्कानों पे हम ,

लुटे जा रहे हैं।


दिल ये मानता नहीं ,

हम कैसे इसे मनाये ,

प्यार के बोल पे हम ,

पागल होते जा रहे हैं।


इस अधूरा प्रेम को हम ,

क्या - क्या समझाएं,

तुम्हारी एक मुस्कान पे हम ,

मरे जा रहे हैं।


तुम्हारी यादें मुझे ,

खींचे जा रही हैं,

अपने दिल को कैसे समझाऊँ ,

ये नहीं समझ रहा।


मेरे अधूरे आसरे का ,

कोई किनारा नहीं है ,

तुम्हारे किनारों का मैं ,

रास्ता देख रहा हूँ।


तेरी आरजू है क्या ,

कैसे मैं बतलाऊं ,

तुम्हारी मुस्कुराती कली पे ,

हम खिचें जा रहें हैं।


ये असत्य जीवन का ,

कोई भरोसा नहीं अब ,

कुछ सोचो तुम भी ,

गला सूखा जा रहा है। ,


तुम्हारी यादों के बिना ,

अब कोई सहारा नहीं है ,

तुम्हारी दिल की डालियों पे ,

हम टूटे जा रहें हैं।


तुम्हारी उम्मीदों का ,

अब कोई भरोसा क्या है ,

इस नश्वर दुनिया से ,

दूर होते जा रहें हैं।



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