प्रेम
प्रेम
प्रेम के बोल पर हम ,
ठगे जा रहे हैं ,
बिना सोचते समझते ,
चले जा रहे हैं।
उनका इरादा क्या है ,
हम ना जानते अभी भी ,
उनकी मुस्कानों पे हम ,
लुटे जा रहे हैं।
दिल ये मानता नहीं ,
हम कैसे इसे मनाये ,
प्यार के बोल पे हम ,
पागल होते जा रहे हैं।
इस अधूरा प्रेम को हम ,
क्या - क्या समझाएं,
तुम्हारी एक मुस्कान पे हम ,
मरे जा रहे हैं।
तुम्हारी यादें मुझे ,
खींचे जा रही हैं,
अपने दिल को कैसे समझाऊँ ,
ये नहीं समझ रहा।
मेरे अधूरे आसरे का ,
कोई किनारा नहीं है ,
तुम्हारे किनारों का मैं ,
रास्ता देख रहा हूँ।
तेरी आरजू है क्या ,
कैसे मैं बतलाऊं ,
तुम्हारी मुस्कुराती कली पे ,
हम खिचें जा रहें हैं।
ये असत्य जीवन का ,
कोई भरोसा नहीं अब ,
कुछ सोचो तुम भी ,
गला सूखा जा रहा है। ,
तुम्हारी यादों के बिना ,
अब कोई सहारा नहीं है ,
तुम्हारी दिल की डालियों पे ,
हम टूटे जा रहें हैं।
तुम्हारी उम्मीदों का ,
अब कोई भरोसा क्या है ,
इस नश्वर दुनिया से ,
दूर होते जा रहें हैं।