प्रेम परीक्षा
प्रेम परीक्षा
🌸 प्रेम परीक्षा 🌸
(त्याग और तप का आलोक गीत)
✍️ श्री हरि
📅 2.08.2025
प्रेम क्या है?
सिर्फ पाने की आकुलता? — नहीं!
प्रेम तो वह दीप हैजो स्वयं को जलाकर
दूसरे के पथ को आलोकित करता है।
यह स्पर्श नहीं, यह संवेदना है,
यह शब्द नहीं, यह मौन समर्पण है,
यह वह मौन है
जो उर्मिला के अधरों पर बैठा रहा
चौदह वर्षों तक —बिना एक भी प्रश्न पूछे,
बिना एक भी आँसू बहाए।
🌿 प्रेम वो संकल्प है,
जो दमयंती को भटके हुए नल में
अब भी अपना स्वामी दिखाता है,
जबकि जीवन का जुआ
उसके हर सुख को हार चुका होता है।
प्रेम वहाँ भी मुस्कुराता है,जहाँ एक स्त्री —
अपने भटके हुए प्रिय के लिए
समस्त संसार से लड़ जाती है,
पर उससे नहीं!
🕊️ प्रेम वो प्रतीक्षा है
जो शकुंतला ने की थी —
दुष्यंत की स्मृति चली गई,
पर प्रेम नहीं गया।
वह उसकी गोद में पलता रहा
भरत बनकर,
जो आगे चलकर बना चक्रवर्ती सम्राट।
हाँ, प्रेम जब परीक्षा में उतरता है
तो राज्य नहीं,
युगों का आधार देता है।
🌸 प्रेम वह आंचल है
जिसमें माँ अपनी इच्छाएँ समेट
संतान के भविष्य को ओढ़ा देती है।
वो माँ — जो कभी हिसाब नहीं माँगती,
वो प्रेम — जो प्रतिदान नहीं चाहता।
क्या यह प्रेम की सबसे कठिन परीक्षा नहीं?
स्वार्थ से परे होकर जीना!
🔥 प्रेम वो अग्निपरीक्षा है,
जिस पर सीता को चलना पड़ा था —
एक पतिव्रता होते हुए भी,
अपनी पवित्रता सिद्ध करने के लिए नहीं
अपितु अपने प्रेम की स्तुति करने के लिए
क्योंकि श्रीराम का आदेश ही
उनके लिए प्रेम था ।
प्रेम जब उच्चतम शिखर पर होता है,
तो उसे परीक्षा देने के लिए
अग्नि में उतरना पड़ता है।
⚔️ प्रेम वह युद्ध है,
जो अर्जुन ने कौरवों के विरुद्ध नहीं,
अपनी आत्मा के भीतर लड़ा था —
कृष्ण के एक संकेत पर।
क्योंकि प्रेम —कर्तव्य कर्म में विश्वास करता है,
न कि अधिकार में।
🌼 प्रेम वो फूल है
जो काँटों के बीच खिलता है,
और जब परीक्षा आती है
तो अपनी खुशबू से कटुता को भी मधुर बना देता है।
प्रेम की सबसे बड़ी पहचान यही है —
कि वह टूट कर भी,
किसी और के लिए संपूर्ण बना रहता है।
🕉️ अंतिम श्लोक — प्रेम का तप
प्रेम वह जल है,
जो स्वयं वाष्प बन जाए
पर दूसरे की प्यास बुझा दे।
वह व्रत है — निराकार, निस्पृह, निर्विकल्प।
वह लौ है —जो अपनी आहुति से
दूसरे के अंधकार को हरती है।
प्रेम की परीक्षा वही उत्तीर्ण करता है,
जो प्रिय को पाकर नहीं,
प्रिय को समझकर जीता है।

