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Anand Mishra

Romance

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Anand Mishra

Romance

प्रेम की मनुहार।।

प्रेम की मनुहार।।

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मन की दीवारों पर अंकित तुमने जो थे शब्द उकेरे ..

गलियां गुज़रीं राहें छूटीं छूटे कितने साँझ सवेरे ....

वर्षों ही बरसातें बीतीं जीवन भूमि रही पर रीती...

सावन की रिमझिम बूंदों से किसने ये सौगातें छीनी...

तुमसे ही जो थी आप्लावित जागी सोई इस जीवन में

पूरित अनुपूरित सी कितनी बहुत रही आशाएँ मन में ..

वो उमंग से भरा काल जो तुम्हें देखकर रचित हुआ था...

अब तक संचित सिंचित रखा थाती कर अपने जीवन में ...

तुमसे सीखी सरगम वो सब गीत तुम्ही ने थे सिखलाए....

क्योंकर स्वयं तुम्ही ने सारे गीत प्रेम के वे बिसराए...

ईश्वर करे रिक्ति जीवन की अगले जन्म साथ में जाए ...

तुमसे ही पूरित हो नव सरगम नव जीवन गीत बनाए ..



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