प्रेम की धरा पर
प्रेम की धरा पर
रिश्ते रूपी कोमल पुष्प
सदैव प्रेम की धरा पर
ही अंकुरित होते हैं
जो सहयोग की ऊष्मा से
स्वतंत्रता-सी पवन का
स्पर्श पा खिल उठते हैं
धैर्य रूपी मुंडेर का
पा संबल सुदृढ़ता से बढ़ते हैं
विश्ववास रूपी जल का
पा सानिध्य निखर उठते हैं
रिश्ते भावना की डोर में
पिरोए प्रेम के मनके सम
समर्पण का प्रतीक बनते हैं
वेदना के कोमल वेग से
जब टूटते हैं पत्ता-पत्ता
हो व्यथित बिखर उठते हैं।
