प्रेम गीत
प्रेम गीत
बहुत से शब्द है ब्रह्मांड में,
चलो कुछ चुन लाते हैं
गीत,संगीत,प्रेम से फिर,
हम उन्हे सजाते है।
गुनगुना कर उन गीतों को,
प्रेम,करुणा पुनः उपजाते है।
आओ चलो फिर से,
ये वसुधा पुनः सजाते हैं,
निस्वार्थ प्रेम ही उपजा कर,
वसुधैव कुटुंबकम् बनाते हैं।
