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Gopal Agrawal

Inspirational

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Gopal Agrawal

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प्रदूषण और हरीतिमा

प्रदूषण और हरीतिमा

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कारे-कारे बदरा घुमड़-घुमड़ कर आए

देखते ही देखते लोप हो गए,

बिन पानी बरसाए,

गड़गड़ाहट कर दी थी,

अपने आने की आहट,

ऐसा लग रहा था कि,


आज बादल जाएगें फट,

बादलों के लोप होते देख,

सभी खिले चेहरे मुरझाएं,

देखते ही देखते लोप हो गए,

बिन पानी बरसाए,


जाते बादलों से पूछा कि,

आप क्यों है हम से नाराज,

कारी घटाएं लेकर आते,

कर कर के आवाज,

पानी नहीं बरसाते,

सब हो जाते है उदास,


बदरा बोले अब याद कर रहे हो आज,

जब हरियाली कट रही थी,

तब क्यों नहीं उठाई आवाज,

क्या करूंगा अब मैं आकर,


बे जुबानों की बस्ती में पानी बरसा कर,

बिन बुलाएं मैं कईं जगह जाता हूं,

जहां रहती है मेरी प्रियतमा,

ये वो स्थान है जहां बसती है हरितिमा,

यहां मैं बिन बुलाए आता हूं,


भरपूर पानी बरसाता हूं,

मुझे बुलाने जगह जगह हरियाली उपजाएं,

उठकर आज से ही पौधे लगाएं,

बदरा जल्दी आओं, पानी बरसाओं के गीत गाएं

फिर कारे कारे बदरा घुमड़ घुमड़ कर आएं

चारो तरफ पानी ही पानी बरसाएं।


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