प्रभोधन
प्रभोधन
क्या है डर सबका ?
क्या है लकीरें ?
क्या है दुनिया ?
क्या है ज़ंजीरें ?
फर्क, तुम और मुझमे ?
फर्क न कोई
फर्क सोच में
फर्क, फलक में नहीं
तुमसे दूर मैं कहाँ जाऊँगा ?
तुमसे उद्गम तुम ही में मिल जाऊँगा
तुमसे ही तुम तक का सफर तर जाऊँगा
तुमसे सब; तुम भीतर, निवास करता जाऊँगा।