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Richa Bharti

Tragedy

3.1  

Richa Bharti

Tragedy

प्राकृतिक आपदा

प्राकृतिक आपदा

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कहीं बूँद बूँद को तरसते लोग

तो कहीं जल का उमड़ा सैलाब है

प्यासी है धरती कहीं

तो कहीं बादलों की टकराकर है

प्राकृति की क्रोध है यह

मनुष्य की तृष्णा का है कारण


तबाह हो गई है आम जिंदगियाँ

दो वक्त की रोटी को मोहताज है

न सर पे छत है

न है उम्मीद की कोई किरण

हर तरफ हाहाकार ही हाहाकार है

प्राकृति की प्रकोप है यह

प्राकृति की क्रोध है यह। ।


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