रिश्तों की पोटली
रिश्तों की पोटली
कितना मुश्किल होता है एक
रिश्ता निभाना
किसी की नज़रों में खरा उतरना
भले ही खुद के नज़रों में खरा
उतरे या नहीं
शायद फर्क नहीं पड़ता
या कहें तो
दूसरों की नज़रों में अपनी
अहमियत की चाह में
कुछ भूल जाते हैं हम
वो है खुद से खुद का रिश्ता
और रिश्तों की पोटली समेटते
समेटते
खुद ही बिखर सा जाते हैं।