अनजाना सफर
अनजाना सफर
सच कहूँ तो हमारा सफर
सच में अनजाना है
तुझे पाने की चाह नहीं मुझ में
फिर भी क्यों तुझे खोने से डरती हूँ
इसलिए तो कहती हूँ
सफर अनजाना है
ये दिल बेगाना है
पर शायद कहीं न कहीं
तू मुझे अपना सा लगता है
मंज़िल का पता नहीं
पर मेरी इबादत सच्ची है
तुझे शायद खबर भी नहीं
तू किसी की दुआओं का
हिस्सा है
तू किसी के अनजाने
सफर की मंज़िल है
तू सुकुन है
तू मंज़िल है
तू मेरी इस अधूरी कविता का
पूरा हिस्सा है। ।