पंख कल्पना के
पंख कल्पना के


साथियों बारी आई अब अपनी
कल्पना को पंख दो
जो अवनति चाहते सदा तुम्हारी
मचा उनमें हड़कंप दो।।
जगाओ सफलता की भूख ख़ुद में
होंठों पर विजय- शंख हो।।
जगा ही डालो सोये खुद को अब
गरजो मानों कि भूकंप हो।।
कब तक धूल-धूसरित,लाचार रहो
करो कुछ सब दंग हों।।
जब परिणाम पटल पर आये, मित्र
सुनाई बस जीत-मृदङ्ग हो।।