पंडित दीनदयाल
पंडित दीनदयाल
अपने बलबूते समाज को बदलने की मुहिम ठानी थी
पंडित दीनदयाल सिख दे गए अब हम सबकी बारी थी
सात वर्ष की उम्र में मां बाप को खोया फिर भी हिम्मत ना हारी थी
शिक्षा में कीर्तिमान हासिल किया अब राष्ट्र सेवा करने की ठानी थी
राष्ट्रीय सेवा संघ के लिए कार्य शुरू किया
राष्ट्र के एकता मिशन का अभियान प्रारंभ किया
अब साहित्य सेवा करने की बारी थी
अब पत्राचार व भारतीय जनसंघ स्थापना करने की जिम्मेदारी थी
पंडित दीनदयाल की एक बात हमें सदैव आकर्षित करती है
उनकी सादगी के पीछे छुपी अनोखी प्रतिभा हमें अलौकिक लगती है
इतने बड़े नेता फिर भी अहंकार ना था
देश के प्रति ना कोई लालच न कोई कटू विचार था
डाक्टर श्याम लाल मुखर्जी का कथन असत्य नहीं था
अगर भारत के पास दो दीनदयाल होते तो
भारत का यह राजनीतिक परिदृश्य नहीं होता
11 फरवरी 1968 को मुगलसराय में
उनका शव मिलने से देश में शोक की लहर दौड़ गई
उनकी निर्मम हत्या से देश की अर्थव्यवस्था फिर से हिल गई
दीनदयाल जी आपकी पुण्यतिथि पे हम आपको नमन करते है
आपके किए देश सेवा से हम सभी भारतीय प्रेरणा भी लिया करते है