पंछियों की दुनिया
पंछियों की दुनिया
घर के आहते में,
खड़े नीम पर,
तोता मैना गौरैया,
मोर बुलबुल कौवा,
प्रेम से रहते हैं।
दीवार पर रखे ,
दाने पानी को,
सब मिल कर खाते पीते हैं।
बिना किसी ऊंच नीच,
एक ही ड़ाली पर बैठ,
बतियाते हैं।
मैं देखती हूँ,
कबूतर, तोता,मैना को,
एक साथ चुगते हुए ।
, चिड़िया, बुलबुल मैंना को
एक ही बर्तन में पानी पीते हुए ।
मैं अकसर सुनती हूँ ,
इनका कलरव ।
देखती हूँ ,
इनके करतब।
चूं चूं चीं चीं करते हैं।
तरह तरह की,
भाव भंगिमायें बनाते हैं।
आंखों को मटकाते हुए,
चोंच को हिलाते हुए ,
भंगिमाएं बनाते हैं।
काश! कि समझ आती ,
इनकी बोली।
इनकी बातें, हंसी ठिठोली।
ये भी बहुत कुछ,
कहते सुनते हैं ।
सुख दुख की,
अनुभूति करते हैं ।
हमारी ही तरह
ये भी रोते हैं।
जब आंधी में,
घरोंदे गिर जाते हैं।
ये भी खुश होते हैं ,
अंड़े से जब
चूजे निकलते हैं ।
ये भी नाचते गाते हैं,
खेत में जब ,
धान लहलहाते हैं।
ये भी चिंतित रहते हैं,
दूर दूर तक जब ,
दाना पानी नहीं पाते हैं।
ये भी चिंतित रहते हैं,
विश्राम के लिये,
जब पेड़ नहीं पाते हैं।
सूरज जब ढलता है,
पृथ्वी से जुदा होता है।
धरा पर अंधेरे गहराते हैं,
पंछी चहचहा कर ,
शाम का दिल बहलाते हैं।
