पल जो बीत गया मुबारक हो
पल जो बीत गया मुबारक हो
दिनकर के सरोवर में नहाई भोर को
जंगल में चहकते पंछियों के शोर को
रिमझिम फुहार में झूमते हुए मोर को
पल जो बीत गया मुबारक हो
खेत में माटी से सने गोरी के पाँव को
गोधूलिका की महक में डूबे गॉंव को
पलकें बिछाये बूढ़े बरगद की छाँव को
पल जो बीत गया मुबारक हो
सुनसान जंगल में, ऊंघती तन्हाई को
दूर शिवालय में, गूंजती शहनाई को
उतुंग शिखर को, उसकी परछाई को
पल जो बीत गया मुबारक हो
बहती नदी को, धारा की कल-कल को
आकाश में मंडराते, बादलों के दल को
मस्त जिंदगानी के, हर सुहावने पल को
पल जो बीत गया मुबारक हो
मायूस झुर्रियों को, पिचके हुए गालों को
उसकी मुफलिसी को, बिखरे बालों को
गुजरे वक्त के, महीनों और सालों को
पल जो बीत गया मुबारक हो
सजना के बालों पर, सजे गुलाब को
आकाश में उड़ते, अनछुए ख्वाब को
यौवन की मुंडेर पर, लटके शबाब को
पल जो बीत गया मुबारक हो
महकते गीत को, भड़कती शायरी को
तन्हाई में लिखी, जवानी की डायरी को
पिया कि इंतज़ार में, गोरी की तैयारी को
पल जो बीत गया मुबारक हो
गोरी के हाथों में, खनकते कंगना को
बेटी के आने से, मुस्कुराते अंगना को
चौखट में बैठी, घूँघट ओढ़े सजना को
पल जो बीत गया मुबारक हो
उसकी मज़बूरी को, उसकी लाचारी को
नेता के दरबार में, चापलूस दरबारी को
लॉकडाउन में बंद, कोरोना महामारी को
पल जो बीत गया मुबारक हो।