पित्र देव ।
पित्र देव ।
वो जो सुखी बंजर आँखें मुझको देख रही है
मैं उनका हमेशा अहसानमंद रहता हूँ
कोई समझे ना समझे उनको कल यहां,
मेरी जिंदगी उसकी तकलीफ झेल रही है।
वो जो सुखी बंजर आँखे मुझको देख रही है
मै उनका सम्मान अपमान हमेशा सहता हूँ
बांधे रहती प्यार मोहब्बत की जंजीरे मुझको,
कुछ अच्छा करने को मुझे कहाँ देर रही है।
वो जो सुखी बंजर आँखे मुझको देख रही है
मैं हमेशा सबको बांधे रखना चाहता हूँ
ना जाने कल किस किस का मतभेद रहेगा,
ऐसे लोगों को जाने कौन सी शक्ति भेद रही है।
वो जो सुखी बंजर आँखें मुझको देख रही है।