पिता
पिता
पिता समान नही कोई दूजा
पिता ही ख़ुदा का रूप दूजा
सागर सा गहरा,आसमाँ सा ऊंचा
धरती सा है वो सहनशील,
करते रहो सदा ही पितृ-पूजा
स्वर्ग उनके लिये है सदा खुला,
जिनके हृदय में है पितृ-प्रतिमा
पिता ही खुदा का रूप दूजा
खुदा उनके पीछे घूमते है,
एक ईंट पर खड़े वो होते हैं,
जो करते है पिता की पूजा
उनके हर लोक होते हैं,अनूपा
उनके हर काम होते हैं पूनिता,
जो पितृ-सेवा को समझते है,गीता
पिता ही ख़ुदा का रूप है!