ritesh deo

Abstract

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पिता

पिता

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पिता अक्सर उलझे होते हैं

समाज के बनाए नियमों और

बेटियों के सपनों के बीच,

पर फिर भी कुछ पिता चुनते हैं

अपनी बेटी और उनके सपनों को

और पितृत्व की नई परिभाषा गढ़ते हैं।


वो अपनी बेटियों को खेलने के लिए 

सिर्फ़ किचन सेट नहीं देते,

देते हैं किताबें, कलम और बन्दूक भी।


वो नहीं सुनाते कहानियां किसी राजकुमार की

जो आकर उसे सोने के महल में ले जाएगा

उनकी कहानियों की किरदार होती हैं वीरांगनाएं ,

मुंह में घोड़े की लगाम पकड़ 

दोनों हाथों से तलवार चलाने वाली मणिकर्णिका,

अपनी कटार से दुश्मनों को धूल चटाने वाली दुर्गावती

और अपने तर्कों से शास्त्रार्थ जीतती गार्गी भी।


वो जानते हैं कि उनकी बेटियां नहीं बनीं

घर की चारदीवारी में रहने के लिए,

इसलिए खोलते हैं घर का दरवाज़ा और 

दिखाते हैं यह संसार,

ताकि वे बन सकें जो 

वो बनना चाहती हैं,


फिर चाहे 

कल्पना चावला की तरह 

जाना हो आसमान के उस पार,

या बछेंद्री पाल की तरह 

चढ़ना हो माउंट एवरेस्ट,

वो पिता उसे सारी 

दुनिया जीतने का हुनर देना चाहते हैं।

 

इन पिताओं के पैर 

बंधे होते हैं परम्पराओं से,

फिर भी ये देते हैं आज़ादी 

अपनी बेटियों को विश्व सुंदरी बनने की,

मंगल ग्रह तक पहुँचने की,


इन्हें नहीं होती जल्दी 

अपनी बेटियों के हाथ पीले करने की,

क्योंकि ये अपनी बेटियों के लिए 

सिर्फ़ पति नहीं,

तलाशते हैं एक साथी,

जो समझ सके उनकी 

बेटियों और उनके सपनों को।


कुछ बेटियों के हिस्से में आते हैं ऐसे पिता

जो सिर्फ़ पिता नहीं, बनते हैं उनके दोस्त


जो अपनी कमाई और प्यार से

भरते हैं अपनी बेटियों के 

ख़्वाबों की गुल्लक,


ऐसे पिताओं के पास 

आँचल भले ही न हो,

ममता भरपूर होती है


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