पिता
पिता
पिता, एक अनोखा रिश्ता,
एक पावन नाता,
बस संस्कारो को गढ़,
परिवार सजाता,
भूल निज दुख सुख,
बस सन्तानोकी खुशियां जुटाता,
चल देता बस खुद को भूल,
बच्चो की दुनिया सजाने को,
कभी संस्कार,कभी फटकार से,
नव स्तंभ बनाने को,
वही है नींव जो,
त्याग से भविष्य हमारा सजाते हैं,
खुद बन कठोर,
बस निर्मलता से सजाते हैं,
अपनी खुशिया तज कर वो,
कितनी मुस्कान लाते हैं,
छोटी छोटी खुशियां दे,
बड़ी खुशियां दे जाते हैं,
याद आते हैं बहुत पिता,
जब छोड़ धरा वो जाते है,
हर पल बस पदचिन्ह उनके,
नव पथ दिखाते हैं,
रूला देती वो पिता की यादें,
और उनका त्याग भी,
जब बड़े हो हम सब जान उन्हें पाते हैं,
याद आती पल पल तुम्हारी,
तुम जहाँ भी जाओ न,
पिता ही तुम्हारा निर्माता,
सदा यही तुम जानो न।