पिता की सीख
पिता की सीख
बेटी के हाथ अपने जो पीले मैं कर रहा
अपने हृदय के टुकड़े को जुदा मैं कर रहा
गम नहीं खुशी है मुझको देख के ये पल
बेटी सजाने जा रही अपना नया ये घर
उम्मीद है खुशियों की हो नही तुझे कमी
बस यही सब सोच कर विदा मैं कर रहा।
जाने से पहले मैं तुम्हें बस इतना कहता हूँ
सुन लो मेरी कुछ काम की बाते मैं कहता हूँ
करना सदा तू सेवा अपने ससुर सास की
जैसे करे तू अब तक अपने माँ बाप की
जीवन तुझे बिताना है अब उनकी छाँव में
मान उनका रखने को विदा में कर रहा।
पति की सेवा ही तेरा अब धर्म हो सदा
जान लेना अच्छे से रिश्ते की मर्यादा
भूलकर भी मन कभी भटके न अब तेरा
मान दो घरों का रखना फर्ज है तेरा
सदा रहेगी खुश यही उम्मीद है मेरी
बस यही सब सोच के विदा मैं कर रहा।
एक बात जो कहना मैं तुमसे भूल से रहा
उस बात को कहता हूँ तुम ध्यान से सुनना
समाज आजकल हमारा कुछ बदल गया
लालच में बेटियों पे अत्याचार हो रहा
तू भूल कर कभी भी अत्याचार न सहे
बस यही उम्मीद पर विदा मैं कर रहा।
बेटी तू अपना हर धर्म व फर्ज निभाना
पर कभी तू किसी झांसे म न आना
अन्याय अत्याचार तू कभी न सहेगी
हर कठिन समय का तू करेगी सामना
अधिकार अपने जानकर कदम बढ़ाएगी
बस यही सब सोचकर विदा मैं कर रहा।
अपने हृदय के टुकड़े को विदा मैं कर रहा।