पीढ़ियों में सोच का अंतर
पीढ़ियों में सोच का अंतर
पीढ़ीयों के अंदर की क्या बात करें।
जब उम्र में अंतर आता है तो सोच में अंतर आ ही जाता है।
फिर भी कहीं-कहीं तो सब आपस में सामंजस्य बिठाकर रह ही लेते हैं।
एक दूसरे की सोच का आदर करते हुए।
जो नापसंद आए उसको प्यार से समझाते हुए।
आपस में एक दूसरे को समझ कर रहना ही समझदारी का काम है।
जो गलत लगे उसे समय व ढंग से समझाया जाए तो घर के बच्चे भी गलत रास्ता नहीं पकड़ेंगे।
बड़े भी अपनी जिद छोड़कर बच्चों के साथ
थोड़ा सामंजस्य बिठाएंगे तो पीढ़ियों का अंतर कोई मायने नहीं रखेगा।
हमने तो चार पीढियों का साथ देखा है।
सबको प्यार से रहते हो सामंजस्य बिठाते देखा है ।
आधुनिकता और पुरातनता एक ही घर में देखी है।
लहंगा ओढ़नी से जींस टॉप वाले बच्चों को घर में देखा है।
रूढ़िवादिता को आधुनिकता में बदलते देखा है जहां जो सही लगा वह करा और जो गलत लगा उसे हटाया।
अगर हम अपने आने वाली पीढ़ी से कुछ आशा न रखकर जियें।
और जो मिले उसे अपना सौभाग्य समझे तो पिढियो के अंतर में सोच का जो फर्क है। वह ज्यादा तकलीफ नहीं देता है।
अपनी जवाबदारी दूसरे के ऊपर ना डालकर खुद निभाएं तो अपना स्वाभिमान भी बना रहता है।
जो हमने करा वह आपको भी कह दिया है।
सहमत होना न होना सब आपके ऊपर निर्भर करता है।
