फूल या शूल
फूल या शूल
बोया है बबूल, चाहता है फूल
अक्ल के अंधे क्या बुद्धि खा रही धूल
अब कुछ नहीं हो सकता
कर्म हो गए, फल रहे फल फूल
जब बोया था बबूल, तब नहीं सोचा था
कांटे ही होंगे मूल
भले ही कांटे से कांटा निकलता हो और दुश्मन को कर देता हो निर्मूल
इस तरह कांटों को बोना थी तुम्हारी बड़ी भूल
वही कांटा जब चुभता है स्वयं को
तब भी देता है उतनी ही शूल
फूल चाहिए तो फिर से बोना होगा
करना होगा स्वयं को धूसरित धूल
पहले ही रखो सावधानी
अन्तर समझो क्या है शूल
और क्या है फूल
बाद में पछताने से, पुनः आरंभ करने से
बेहतर है समझो क्या होगा फल
फिर बोना फूल, चाहे शूल
अभी तो जो बोया है
उसे ही करना होगा कुबूल
और कोई हल नहीं सिवाय भुगतने के
हाँ, अगली बार ध्यान रखना
फूल चाहते हो तो बोना फूल.
