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Churaman Sahu

Abstract

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Churaman Sahu

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फुरसत वाला इतवार

फुरसत वाला इतवार

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 शिकायत बहुत करते रहते थे

 फ़ुरसत वाला इतवार नहीं मिलता 


आज मिल रहा है ,घर में रहने के लिए 

तो कुछ दिन अपनो के साथ बिताओ ना 


ऐसे कितने ही दिन इंतज़ार करवाते रहे 

कितने ही सुनहरे पल यूँ ही गवाँ दिये 


अधूरी रह गयी थी परियों वाली कहानी

मौक़ा है आज ,उसे फिर से सुनाओ ना


नाश्ता ,लंच और डिनर उनसे बहुत खाये 

गर्म चाय आज ,उन्हें भी पिलाओ ना 


आफिस ,घर करते करते बीते कितने वर्ष 

आई, बाबा संग कुछ दिन आज बिताओ ना 


धूल खाती अलमारी में पड़ी किताबें

कुछ पन्ने पलटा कर उन्हें फिर सजाओ ना


मिला है मौक़ा सभी को ,करोना के बहाने से 

इसे फिर से फ़ुरसत वाला इतवार बनाओ ना। 




















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