फर्क
फर्क
खबर बनना कहां अच्छा लगता है।
सहर से लेकर हर पहर
अब जहर लगता है।
आँखों से वह शख्स खामोश लगता है।
घर लेकिन चिड़िया घर लगता है।
चादर छोटी हो या बड़ी कहां फर्क पड़ता है ।
दिल छोटा हो तो जरूर खलल पड़ता है।
खबर बनना कहां अच्छा लगता है।
सहर से लेकर हर पहर
अब जहर लगता है।
आँखों से वह शख्स खामोश लगता है।
घर लेकिन चिड़िया घर लगता है।
चादर छोटी हो या बड़ी कहां फर्क पड़ता है ।
दिल छोटा हो तो जरूर खलल पड़ता है।