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Sandeep Gupta

Inspirational

5.0  

Sandeep Gupta

Inspirational

फर्क पड़ता है

फर्क पड़ता है

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फर्क इस बात से नहीं पड़ता इतना कि,

एक चाय वाला पंत-प्रधान बन गया,

पर इस बात से पड़ता है बहुत, कि,

उसने सपने में भी चाय बेची,


या सपनों में बुने नए सपने,

बड़े सपने,

कुछ बड़ा करने के सपने,

बड़ा बनने के सपने।


फर्क इस बात से नहीं पड़ता कि

कौन कहाँ है,

पर इस बात से पड़ जाता है बहुत,

कि कौन कहाँ जा रहा है,


चिपका है अतीत से, काई सा,

या वर्तमान की कश्ती में सवार,

लहरों के थपेड़े खाता,

सुनहरी रेत के द्वीपों वाले

भविष्य की और बढ़ रहा है।


फर्क इस बात से नहीं पड़ता कि

कौन क्या कह रहा है,

पर इस बात से पड़ जाता है बहुत,

कि कौन क्या कर रहा है,


ठहरा हुआ है,

कि आगे बढ़ रहा है,

चाहे पैदल ही सही,

अकेला ही सही।


फर्क इस बात से नहीं पड़ता इतना कि

कोई सो रहा है,

और कोई जाग रहा है,

पर इस बात से पड़ जाता है बहुत, कि,

जब सोए थे सब,

जागा कौन था तब।


फर्क इस बात से पड़ जाता है बहुत, कि,

जब सोए थे सब, तब रात भर,

और रातों तक,

अस्पताल में मरीज़ को

मौत के मुँह से निकालने,


जी-जान से जुटा था कोई डॉक्टर,

और मीलों दूर अपनों से,

सरहदों पर,

दुश्मन से रूबरू था,

एक सिपाही।


फर्क इस बात से नहीं पड़ता कभी-कभी कि

सच का बोलबाला है या झूठ का,

पर इस बात से पड़ जाता है बहुत कि

हम लड़ रहे हैं सच के लिए,


एकजुट खड़े हैं सच के साथ,

या झूठ का दामन थामे भर रहे हैं,

अपने स्वार्थ के झोले।।


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