फरिश्ता मैं कहलाऊँ
फरिश्ता मैं कहलाऊँ


दिल कहे हर पल मेरा कुछ ऐसा मैं कर जाऊं
दुख का जहर पीकर मैं अमृत सबको दे जाऊं
आंसूओं की बारिश दिखती सबकी आंखों में
उन्हीं आंसुओं में खुशी का मोती मैं बन जाऊं
अपनों के बिना लोग अनुभव करते बेसहारा
सर रखे जिस पर कोई मैं वो कंधा बन जाऊं
एक दर्द मिटने से पहले घाव नया लग जाता
गुम हो जाए हर दर्द ऐसा मरहम मैं बन जाऊं
डूब रही हो जिनकी जीवन नैया मंझधारों में
मांझी बनकर मैं उनकी नैया को पार लगाऊं
जीवन विश्व सेवा में बीते रखूं यही मैं कामना
निस्वार्थ सेवा के बल पर फरिश्ता मैं कहलाऊँ।