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Mukesh Kumar Modi

Abstract Tragedy Inspirational

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Mukesh Kumar Modi

Abstract Tragedy Inspirational

श्रेष्ठ पुरुष नजर आओ

श्रेष्ठ पुरुष नजर आओ

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औरत का पुरुषों से, क्यों भरोसा टूट रहा

बेशकीमती ईमान, क्यों पुरुषों से छूट रहा

अपनी ही जुबान पर, कायम ना रह पाता

हवस का गुलाम, ये मर्द क्यों नजर आता

खुदा भी करता आज के, इंसान पर हैरत

पुरुषों की आंखों से, गुम होने लगी गैरत

भरता जाता अपने, दिल में खोट ही खोट

देता रहता नारी को, ना जाने कितनी चोट

नीयत गंदी करके, अपना भरोसा गंवाता

सारे फर्ज भूलकर, स्वयं का मान घटाता

मौका मिल जाए तो, बिलकुल ना चूकता

अपने ही चरित्र पर, बेशर्म होकर थूकता

वासनाएं पालकर बना, गन्दगी का कीड़ा

नजर ना आती इसे, और किसी की पीड़ा

हिसाब होगा इसका, समय वो भी आएगा

अगले जन्म में ऐसा मर्द, नारी तन पाएगा

कष्ट सभी सहने होंगे, बनकर उसको नारी

देरी ना होगी अब, आएगी उसकी भी बारी

समय बहुत कम है, अपना ईमान जगाओ

त्यागो सारी बुराइयां, दिव्य गुण अपनाओ

नारी का भरोसा तुम, जीतकर दिखलाओ

हर औरत को तुम, श्रेष्ठ पुरुष नजर आओ

*ॐ शांति*



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