पहनावा
पहनावा
पहनने के मायने बदल देता है पहनावा।
लोगों का नजरिया बदल देता है पहनावा।
हर बार पहनावे से ही क्यूं आंका जाता है स्त्री को।
बस नजरिए को बदलने की जरूरत है हर किसी को।
अगर पहन लिया जीन्स या स्कर्ट तो हाई फाई हो जाती हैं।
और अगर दुपट्टा सर पे लिया तो गंवार कहलाती हैं।
ये पहनावे का खेल नहीं है, जनाब।
बस समाज का नजरिया ही हो चुका है खराब।
एक बार मैने भी जब साड़ी पहनी थी पहली बार।
खुद में ही शरमा रही थी,और गिर रही थी बार बार।
सब कह रहे थे,संभालकर चलो।।
फिर साड़ी पहनी शादी के बाद।।
तो मैने साड़ी को नहीं साड़ी ने मुझे ही पहनना शुरू कर दिया।
साड़ी में उलझने पर सबने मुझे टोकना शुरू कर दिया।
ठीक से चलना भी नही आता क्या।
ये पहनावे को लेकर समाज का नजरिया न जाने कब तक चलेगा।
किसी के पहनावे पर टिप्पणी करना जाने कब रुकेगा।।
ये सिलसिला यहीं खत्म न हुआ।
पहनावे को देख लोग हैसियत का पता लगाने लगे।
किसी गरीब के पहनावे को देख उसके पास आने से कतराने लगे।
अरे उसके पहनावे को न देखिए साहब।।
जरा हटके सोचिए और उसके दिल में झांकिये।।
क्या पता आपके सुंदर वस्त्रों ने आपको किसी की मदद न करने दी हो।
और शायद वह गरीब किसी की मदद करके आया हो।
पहनावा जो भी हो, नजर साफ़ रखिए।
चाहे साड़ी हो या जीन्स हो ।।
नजर में हर परिधान का पवित्र हिसाब रखिए।
क्यूंकि शर्म नजर में होनी चाहिए, पहनावे में नहीं।।।।