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Surendra kumar singh

Romance

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Surendra kumar singh

Romance

पहलू में चाँद

पहलू में चाँद

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चाँद मेरे पहलू में है

और सितारों के सौंदर्य में

खोया खोया मैं

उनसे दिल्लगी कर रहा हूँ।


रंग बिरंगे सितारे

रंग विरंगी चमक

तरह तरह के संवाद

जैसे क्या उन्हें भी आभाष है।


मेरे प्रेम का उनसे

क्या कभी मेरा भी

ख़्याल आता है उनको

क्या उन्हें भी लगता है।


मैं भी चाँद का चक्कर काट रहा हूँ

अपनी जीवन की निर्धारत धुरी पर।

यकीनन मुझे जरूरत है चाँद की

विश्वास जो है मेरा।


उसकी चांदनी पर

उसकी शीतलता पर

हर पल मुस्कराते रहने की

उसकी अदा पर

और सितारे हैं कि मुझे सुनते हैं।


और मुस्कराते हैं मुझ पर

कभी मन ही मन

तो कभी खिलखिलाकर हंस पड़ते हैं

मेरे उठते हुये सवाल पर।


बेखबर हूँ मैं अपने पहलू में चाँद से

चाँद मेरे पहलू में है

इसकी खबर मुझे एक सितारे ने दी

मुझ पर दया करके

और बताया है

उससे रूबरू होने का उपाय।


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