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मिली साहा

Abstract Classics

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मिली साहा

Abstract Classics

पहली प्रार्थना

पहली प्रार्थना

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पहली प्रार्थना हमारी ऐसी हो,

दिल हमारा औरों की खुशी में खुश हो

बांट सके किसी का दुख -दर्द हम 

हे! परमात्मा ऐसी हमारी प्रवृत्ति हो।


किसी भूखे को खिला सके अन्न

इतनी शक्ति देना ये विनती सुन लेना

किसी के आंँसुओं की वज़ह ना बने

हे! प्रभु ज्ञान का प्रकाश हमें देना।


खुशियों के फूल हम बांट सके औरों में 

बस इतना धनवान तू हमें बना

जब तक हैं सांँसे तेरे चरणों की धूल मिले 

बस यही है दिल की कामना।


तेरी करुणा के इस बहते जल में 

पावन हो जाए मन का कोना-कोना

बैर भाव ना हो किसी का किसी से

और ना मन में रहे बदले की कोई भावना।


सोचे ना हम क्या पाया तुझसे

बस सोचे यही क्या जग को हमने दिया

लोभ, लालच से मुक्त रहे सदा मन

हमारा यहाँ कुछ नहीं सबकुछ तूने ही दिया।


तेरे नाम के सिवा यहांँ सब कुछ नश्वर

तेरा ही दिया तुझे करते हैं अर्पण

तू जो थोड़ी जगह दे दे अपने चरणों में

हे ! प्रभु तो ये जीवन मेरा हो जाए मधुबन।


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