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Piyush Pant

Abstract

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Piyush Pant

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पहली बूंद!

पहली बूंद!

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प्रारम्भ हुआ फिर ऋतु- चक्र,

शीतल बयार ने गति अपनाई!

विकसित हुई कोपलें सारी,

वृक्षों ने भी ली अंगड़ाई!

सूर्यदेव के तीक्ष्ण क्रोध ने,

सवॆ धरा को तप्त किया जब,

कृष्ण मेघ से आच्छादित नभ,

वसुंधरा फिर से हर्षाई!

पहली बूंद गिरी जब, प्रकृति

अपने ऊपर इठलाई,

प्राणों का संचार कराती,

अनहद ध्वनि निकल आई!

चैन मिला दुःखित जीवों को,

अंकुर फूट निकल आए!

निज आंचल पर रंग बिखेर कर,

भूमि भी अब मंगलाई!

मानव जो थे घर के भीतर,

हर्षित हो सब बाहर आए!

छत पर बूंद गिरी जब पहली,

मल्हारों की लय छायी!

प्रारम्भ हुआ फिर ऋतु- चक्र,

शीतल बयार ने गति अपनाई!

विकसित हुई कोपलें सारी,

वृक्षों ने भी ली अंगड़ाई!


                 



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