फ़िराक़
फ़िराक़
आते जाते हैं बहुत दिल को दुखाने वाले
हमको अपने ना मिले अपना जताने वाले
हो गयी रात तो कहते हैं चलो घर को चलो
राह में हमको कई लोग उठाने वाले
हां सही बात है ये वस्ल तो मुमकिन ही ना था
याद आते है बहोत सपने दिखाने वाले
हमको कोई ना मिला शम्मा जलाने वाला
हमको जितने भी मिले सब थे बुझाने वाले
मरना मुश्किल था मगर शुक्र खुदाया तेरा
मुझको हर वक़्त तेरी याद दिलाने वाले
किस तरह ख़ाक हुई बस्ती-ए-दिल की हसरत
दूर से देखते थे आग लगाने वाले
हैं मेरे दोस्त मेरी जान मेरे सबसे अज़ीज़
मुझको रोते हुए भी इतना हँसाने वाले
वस्ल को छोड़ मुझे शहर में घुसने ना दिया
इतने अड़ियल हैं तेरे गाँव घराने वाले।