वस्ल का जाल
वस्ल का जाल
उसने हमारे सभी दिल का दाग़ देख लिया
दिले वजूद का जैसे सुराख़ देख लिया
अब उसकी कम ही खालिश रह गयी है इस दिल में
अब उसके हुस्न का सारा शबाब देख लिया
यूँ ऐसे बिछडू की मिल पाऊं न दुबारा उसे
उसकी शादी का जब इश्तेहार देख लिया
मेरे पड़ोस में रहता है चाँद का टुकड़ा
की हमने दिन में भी एक माहताब देख लिया
की अब रकीफो से भी शर्म आती है मुझको
ज़माना मैंने ही इतना ख़राब देख लिया
ये इतनी भीड़ जमा क्यों है तेरे घर के पास
क्या इन सभी ने तेरे घर का बाब देख लिया
जब एक ग़ुलाब को बिखरा हुआ सा देख लिया
लगा की ऐसे तुझे बेहिजाब देख लिया।

