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Irfan Haidar JZ

Romance

4  

Irfan Haidar JZ

Romance

वस्ल का जाल

वस्ल का जाल

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202

उसने हमारे सभी दिल का दाग़ देख लिया

दिले वजूद का जैसे सुराख़ देख लिया


अब उसकी कम ही खालिश रह गयी है इस दिल में

अब उसके हुस्न का सारा शबाब देख लिया


यूँ ऐसे बिछडू की मिल पाऊं न दुबारा उसे

उसकी शादी का जब इश्तेहार देख लिया


मेरे पड़ोस में रहता है चाँद का टुकड़ा

की हमने दिन में भी एक माहताब देख लिया


की अब रकीफो से भी शर्म आती है मुझको

ज़माना मैंने ही इतना ख़राब देख लिया


ये इतनी भीड़ जमा क्यों है तेरे घर के पास

क्या इन सभी ने तेरे घर का बाब देख लिया


जब एक ग़ुलाब को बिखरा हुआ सा देख लिया

लगा की ऐसे तुझे बेहिजाब देख लिया।


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