फ़िराक़ 2.0
फ़िराक़ 2.0
हर रोज़ तेरी याद से टकरा रहे हैं हम
कुछ गम चल रहे है बिखर जा रहे है हम
एक ओस जम रही है दिले दागदार में
एक आग लग रही है सुलग जा रहे है हम
इसमें कसूर मेरा नहीं है तुम्हारा है
ये बात बोलकर बड़ा पछता रहे है हम
जो मेरा नाम ले के पुकारा था इस तरह
वो याद कर रहे और, इतरा रहे है हम
उसने कभी जो की थी मेरे हक़ में बद्दुआ
वो हो गयी कबूल के घबरा रहे है हम