STORYMIRROR

Axan Mikaya

Abstract

3  

Axan Mikaya

Abstract

फिर से इंसान बन जाते हैं

फिर से इंसान बन जाते हैं

1 min
344

गौर से देखा तो दुनिया कुछ और ही नजर आई

दिखाावा और सच्चाई से कोई नाता नहीं है भाई,

चंद खुशियों को संस्कारों से तौलते हैं

खुद की बुराइयों को हालात बोलते हैं,

हवस मिटानेे को भावनाओं से खेलते हैं

लालच लेकर इंसानियत को पैसों सेे तौलते हैं,

कुछ जानकारीओ से खुद को समझदार बोलते हैं

बेवकूफ बनाकर खुद को चालाक बोलते हैं,

काम निकलनेे पर मां बाप को भी छोड़ते हैं

जिससेेेे काम निकलवाना हो उसी को दोस्त बोलते हैं,

ऐसा होकर भी खुद को इंसान बोलते हैं

समलो आओ दुनिया को खूबसूरत बनाते हैं,

आओ पूर्वजों के संस्कारों को आगे बढ़ाते हैं

जो मिला वह आगे देते जाते हैं,

अच्छाई से बुराई को हराते हैं

फिर से इंसान बन जाते हैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract