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Axay Kumar

Abstract

4.5  

Axay Kumar

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फिर से इंसान बन जाते हैं

फिर से इंसान बन जाते हैं

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गौर से देखा तो दुनिया कुछ और ही नजर आई

दिखाावा और सच्चाई से कोई नाता नहीं है भाई,

चंद खुशियों को संस्कारों से तौलते हैं

खुद की बुराइयों को हालात बोलते हैं,

हवस मिटानेे को भावनाओं से खेलते हैं

लालच लेकर इंसानियत को पैसों सेे तौलते हैं,

कुछ जानकारीओ से खुद को समझदार बोलते हैं

बेवकूफ बनाकर खुद को चालाक बोलते हैं,

काम निकलनेे पर मां बाप को भी छोड़ते हैं

जिससेेेे काम निकलवाना हो उसी को दोस्त बोलते हैं,

ऐसा होकर भी खुद को इंसान बोलते हैं

समलो आओ दुनिया को खूबसूरत बनाते हैं,

आओ पूर्वजों के संस्कारों को आगे बढ़ाते हैं

जो मिला वह आगे देते जाते हैं,

अच्छाई से बुराई को हराते हैं

फिर से इंसान बन जाते हैं।


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