STORYMIRROR

Karishma Warsi

Abstract Inspirational

4  

Karishma Warsi

Abstract Inspirational

"फिर भी वो उठती है"

"फिर भी वो उठती है"

1 min
5

 🌺 एक मज़बूत, स्वतंत्र नारी बनना,
अब भी आसान नहीं इस समाज में।
 वे उसकी हिम्मत की तारीफ़ तो करते हैं,
पर सवाल उठाते हैं हर अंदाज़ में। कहते हैं —
 "आवाज़ तेरी कुछ ज़्यादा है",
"सपने तेरे आसमान से आगे हैं!"
 फिर भी वो चलती है सिर उठाकर,
हर दीवार तोड़ती, हर ज़ख्म संभालकर।
 कहा गया — "ठहर जा", वो दौड़ पड़ी,
रोकना चाहा, तो वो सूरज बन खड़ी।
हर "न" के जवाब में उसने लिखा —
अपनी तक़दीर, अपने हाथों से लिखा।
 समझ न पाए अभी तक लोग उसकी रीत,
पर वो मुस्कुराती है, हार नहीं मानती जीत।
 वो है आग, वो है रौशनी की लकीर,
नारी — जो झुकी नहीं, बस बढ़ती रही दिल से गंभीर। 🌹


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract