"फिर भी वो उठती है"
"फिर भी वो उठती है"
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एक मज़बूत, स्वतंत्र नारी बनना,
अब भी आसान नहीं इस समाज में।
वे उसकी हिम्मत की तारीफ़ तो करते हैं,
पर सवाल उठाते हैं हर अंदाज़ में।
कहते हैं —
"आवाज़ तेरी कुछ ज़्यादा है",
"सपने तेरे आसमान से आगे हैं!"
फिर भी वो चलती है सिर उठाकर,
हर दीवार तोड़ती, हर ज़ख्म संभालकर।
कहा गया — "ठहर जा", वो दौड़ पड़ी,
रोकना चाहा, तो वो सूरज बन खड़ी।
हर "न" के जवाब में उसने लिखा —
अपनी तक़दीर, अपने हाथों से लिखा।
समझ न पाए अभी तक लोग उसकी रीत,
पर वो मुस्कुराती है, हार नहीं मानती जीत।
वो है आग, वो है रौशनी की लकीर,
नारी — जो झुकी नहीं, बस बढ़ती रही दिल से गंभीर। 🌹
