ग़ज़ल
ग़ज़ल
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वफ़ा मासूम मेरी भी किसी को रास आ जाए,
रिझाने की अदा कोई मुझे भी ख़ास आ जाए।
मुहब्बत की नुमाइश हम नहीं कर पाएंगे ऐसे,
कोई चलकर हमारी सादगी के पास आ जाए।
नज़र से ही कहो सब कुछ नज़र से ही सुनो सब कुछ,
कहीं दीवार ना सुन ले तो कारावास आ जाए।
निग़ाहों से तुम्हारे हिज्र का सावन बरसता है,
अगर तुम इक नज़र भी देख लो मधुमास आ जाए।
कई नादान हैं ख़ुद को ख़ुदा ही मान बैठे हैं,
इन्हें इंसान होने का ज़रा एहसास आ जाए।
ख़ुदा कर दे 'करिश्मा' तो भरे सैलाब सहरा में
समंदर में भी पानी की तरसती प्यास आ जाए।।