फैसला
फैसला
⚖️ “फैसला” ⚖️
(एक धर्म, दर्शन और आत्मसंवाद की अलंकारमयी युगवाणी)
✍️ श्री हरि
30.7.2025
जब शब्द मौन में गलते हों,
और प्रश्न आत्मा को निगलने लगें,
जब मन की पंचायत में भाव खड़े हों,
और सत्य–असत्य उलझने लगें —
तब कोई शंख नहीं बजता,
कोई ऋषि उपदेश नहीं देता —
तब बस आत्मा की पुकार होती है —
कि अब ‘तू’ नहीं, ‘तृप्ति’ बोलनी चाहिए।
यह जीवन — कोई व्यापार नहीं,
जहाँ लाभ–हानि से फैसला हो।
यह कोई युद्ध नहीं,
जहाँ केवल विजय ही वरणीय हो।
यह तो धर्मयुद्ध है —
जहाँ अर्जुन को गाण्डीव उठाने से पहले
अपने मन से पूछना होता है —
“मैं जो करने जा रहा हूँ,
क्या वह केवल मेरा धर्म है —
या पूरे युग का?”
फैसला केवल निर्णय नहीं होता —
वह इतिहास के गर्भ में गूँजा हुआ ‘सत्य का स्पर्श’ होता है।
जब हरिश्चंद्र ने सत्य चुना —
तो कफ़न की दुकान में बैठा राजर्षि
सत्य की अटल परिभाषा बन गया।
जब एकलव्य ने अंगूठा दिया —
तो गुरु-भक्ति बलिदान का स्वरूप बन कर
आसमान पर बिखर गई ।
जब सीता ने अग्नि को छुआ —
तो स्त्रीत्व के संकल्प की मर्यादा बन गई।
जब राम ने वनवास स्वीकारा —
तो षड़यंत्र पराजित हुआ
और त्याग से न केवल परिवार
अपितु संसार कृतकृत्य हो गया।
तो निर्णय क्या है?
वह वह अग्नि है
जिसमें “स्व” को गलाकर
“सर्व” को ढालना पड़ता है।
जहाँ न्याय केवल कानून नहीं —
एक संस्कार हो।
जहाँ विकल्पों की भीड़ में
कर्तव्य का सिंहासन पहचाना जाए।
जहाँ मन पूछे —
“यह क्या मुझे आसान लगेगा?”
और आत्मा कहे —
“नहीं, यह मुझे उत्तम बनाएगा।”
फैसला वह नहीं होता
जो "स्वयं" का पोषण करता है
फैसला वह होता है
जिससे जग प्रकाशित, पल्लवित होता है ।
फैसले सरल नहीं होते,
वे "तप" होते हैं।
ऋषियों के मौन जैसे,
शस्त्रधारी धर्म की आँख जैसे।
जहाँ विचार नहीं,
विवेक से प्रश्न पूछे जाते हैं।
जहाँ तर्क नहीं,
त्याग से उत्तर दिए जाते हैं।
जब नारी यह तय करती है
कि वह केवल देह नहीं, चेतना है,
तो वह मोहिनी नहीं, दुर्गा बन जाती है।
जब कोई युवक कहता है
कि मैं भीड़ नहीं, कृष्ण हूँ —
तो वह मानव नहीं, युग प्रवर्तक बन जाता है।
जब कोई राष्ट्र कहता है —
कि मैं केवल भूखंड नहीं, संस्कृति हूँ,
तो वह धरती का एक टुकड़ा नहीं,
"भारतमाता" बन जाता है।
इसलिए हे मानव!
मत पूछ, कौन क्या बोलेगा —
मत सोच, किसको क्या रुचेगा।
क्योंकि अंततः,
जब न्याय की देवी आँखें बंद करती है —
तो तेरी आत्मा ही उसका पलड़ा बनती है।
तू न्याय कर —
पर उसके लिए पहले खुद को दंडित कर।
तू निर्णय कर —
पर उससे पहले मोह की गांठ काट।
तू फैसला सुना —
पर वह ऐसा हो —
जो तुझे भी ऊँचा करे,
और समस्त सृष्टि को।
🌿
क्योंकि
एक न्यायपूर्ण फैसला —
एक पूरे युग को बदल सकता है।
और एक स्वार्थपूर्ण निर्णय —
एक पांडवों को लाक्षागृह,
और दुर्योधन को सिंहासन दे सकता है।
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