फैला आत्याचार है
फैला आत्याचार है
कर्मठता की राह छोड़कर,
तुम अधीर हो जो इतना
कायरता की बात सोचकर,
तुम फ़कीर हो जो इतना
शिथिल हुए हर आलम्बन में,
नहीं कोई विस्तार है।
यहाँ, वहाँ हर कहीं जगत में
फैला अत्याचार है।
अब जिनके शरणागत हो तुम,
खुद ही उनका नहीं ठिकाना।
नित्य नए छल-छद्म रच रहे
धन ही उनका मुख्य निशाना।
उनके अपने उस उद्यम में,
धर्म-कर्म निस्सार है।
यहाँ वहाँ हर कहीं जगत में
फैला अत्याचार है।
जो केवल झूठे हैं हरदम
लिए बहाना लूट रहे हैं,
स्वाँग रच रहे धर्म कर्म का
भीतर लेकिन टूट रहे हैं,
विधि की नैसर्गिकता का अब
नहीं कोई उपचार है।
यहाँ वहाँ हर कहीं जगत में
फैला अत्याचार है।
लिप्त हुए अपराधों में वे
नारी का सम्मान नहीं है
भटके हुए लक्ष्य से अब तक
कोई भी निर्माण नहीं है
उनके दुराचरण को अब तो
एकदम से धिक्कार है।
यहाँ वहाँ हर कहीं जगत में
फैला अत्याचार है।
कर्मठता की ज्योति जला लो,
खुद ही तुम तकदीर बनाओ,
भाग्यवान हो जाओ इतने
सुख हर तस्वीर बनाओ,
जीवन में आगे बढ़ने का
कर्म एक आधार है।
यहाँ वहाँ हर कहीं जगत में
फैला अत्याचार है।