पेन्सिल की दास्तान
पेन्सिल की दास्तान
सबसे अच्छा साथी,
जो छीलते-छीलते अपनी जान दे देता,
नोकिया टूट जाए तो क्या करे,
कहता हर बच्चा।
दोनों तरफ से छीलते,
कभी एक तरफ अच्छे से चूसते,
कभी उसे सिगरेट की तरह पीते,
इसलिए कई डांट खाते।
दोस्तों की पेन्सिल लेके कभी वापस नहीं करते,
तो कभी उसके छिलके से कलाकारी करते,
कभी उसे बाल में लगाते,
तो कभी कान में अटकाते।
याद बड़ी आती है उस पेन्सिल की,
जो सारी गलतियाँ मिटा देती,
कभी चुभती, कभी कलाकारी कर देती,
कभी बच्चों की किताबों में खुशियों के रंग भर देती।
अपनी कलाकारी से नई छवि तैयार करती,
नए सुनहरे सपने दिखा देती,
अच्छा संघर्ष सिखा देती,
ऐसी है यह पेन्सिल की दास्तान।