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Amita Mishra

Classics Inspirational

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Amita Mishra

Classics Inspirational

पौराणिक कथा

पौराणिक कथा

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आओ मैं सुनाती मार्गशीर्ष की ये कहानी

जिसमें लक्ष्मी महारानी जग्गनाथ सो बोली बानी


मार्गशीष गुरुवार है जाना जन-जन के द्वार

देखताक के घर आऊँ करके जन उद्धार


हामी भरी जगन्नाथ ने गयी लक्ष्मी घसिया द्वार

चौक दिया धूप दीप से सजा उसका द्वार


दूध, दही, मालपुआ भोग लगा विशेष

माँ लक्ष्मी प्रसन्न हुई दे दी आशीष


हलधर भैया ने जब जाना लक्ष्मी गयी घसिया द्वार

तब कान्हा से कहा भ्रष्ट हुआ हमारा संस्कार


लक्ष्मी को तुम तुरंत निकलो या फिर अपने दाऊ को

दाउ की बात मान कर अपनी लक्ष्मी को निकाल दिया


क्या करते हो जगन्नाथ जी मेरा दोष कहो जरा

आपकी आज्ञा से मैंने हर कार्य किया 


मौन हुये जब जगन्नाथ तब श्राप दिया लक्ष्मी ने

मुझ बिन मिले ना अन्न जल तुमको धरा गगन में


विश्वकर्मा को याद किया बनाया एक महल सूंदर

मोती माणिक से निर्मित घसिया का घर सूंदर


बिन लक्ष्मी बेहाल हुए जग्गनाथ और बलदाऊ

चार दिवस से मिला नही अन्न जल कही


बिन लक्ष्मी बेहाल हुए जी तब जाना पत्नी विशेष

नगर नगर घुमा फिर भी मिला नही भोजन विशेष


सूर्य आग से तपे, समुद्र भी सुख गये हुये बेहाल तब

देख सुंदर महल भागे भागे दोनो गए


कहा देखो घसिया घर है चाहो तो सब पूर्ण है

भूख से व्याकुल दोनो भाई जाट पात की सुधि बिसराई


मिला 56 पकवान खाके हुये तब निहाल

एक मिनट में कहा गये भोजन पूरी थाल


लक्ष्मी मिली आज पुनः क्या ये स्वाद है अन्नपूर्णा का

सोच रहे है जग्गनाथ जी मांग रहे मन मे क्षमा 


तब लक्ष्मी महारानी जगन्नाथ से बोली बानी

पुरुष जब जब नारी का करेगा नित अपमान


अन्न जल बिन भटके रहेगा नित बेहाल

नारी लक्ष्मी रूप है मत करिए अपमान


जग्गनाथ ना बच सके तुम मनुष्य किस समान

पत्नी अन्नपूर्णा, लक्ष्मी की मूरत सदा करिए सम्मान


जगन्नाथ बोले मृदु बानी सुनो मेरी लक्ष्मी महारानी

भूल हुई है मुझसे नही करना था अपमान


अब देता हूं मैं वरदान जगन्नाथ पुरी में अब नही 

जात पात की बात सब नर खाये एक थाल में भात


जो नारी का करें सम्मान मिले उसे लक्ष्मी नारायण

का वरदान सफल जीवन हो सुखमय हो जन जान।


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