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Manju Anand

Abstract

4.5  

Manju Anand

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पैसा

पैसा

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पैसा तुझसे है यह कैसा नाता,

परमप्रिय सर्वेसर्वा बस पैसा ही कहलाता,

जोड़े रखता हर रिश्ता,

रिश्तो में दरारे भी डलवाता,

गैरो को बना कर अपना

अपनो को गैर बनाता

इसकी माया ये ही जाने

ना जाने क्या-क्या प्रपंच रचाता,

है पैसा जिसके पास,

वही अकलमंद&nb

sp;कहलाता,

छुप जाते अवगुण हज़ार,

पैसा जहाँ अपनी कृपा बरसाता,

रह जाते पीछे सब रिश्ते नाते,

पैसा ही अव्वल आता,

जब हो जेब खाली,

तब कुछ भी नज़र नहीं आता,

सब सही हो जाता,

जब पैसा पास में आता,

पैसा तुझसे है यह कैसा नाता।

 


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