पापा का संघर्ष
पापा का संघर्ष
पापा के चेहरे की झुर्रियां और
ढलती उम्र का ढल जाना,
याद है बचपन में लिपटकर
उनसे उनकी बाहों में सो जाना।
पापा के कांधों का झुकना
हमें एक कहानी कहते हैं,
ज़िंदगी की तपती धूपों में
उनके संघर्ष की रवानी कहते हैं ।
पापा का वो मुस्काता चेहरा
अब शांत चुप सा रहता है,
जिम्मेदारियों के बोझ तले
उनके खुदके ख्वाब कहीं दफ़्न से हैं।
न खुद के लिए कोई तमन्ना
न चाहतों की वो बात करते हैं,
बस बच्चों की ख्वाहिश हो पूरी
यही अपनी किस्मत से लिखते हैं ।
ना कपड़ों की कोई फ़िक्र उन्हें
ना खुद पर ध्यान वो रखते हैं,
बच्चों की परवरिश में अक्सर
खुद में ही डूबे रहते हैं।
निवाले भी अपनी पसन्द के
कितने सालों से छूटे हैं,
घर के हर सदस्य ने खाया
यही तसल्ली वो करते हैं ।
नज़रें अब धुंधली हो गई उनकी
पर नज़रिया उनका वही रहा,
हर मुश्किल में ढाल बने
खुद मिटते सदा ही रहते हैं ।
ना कभी थके वो इस दौड़ में
न नींद की कभी कोई परवाह,
बस जिम्मेदारियों की कश्मकश में
खुद को देते रहे सजा।
उनके हाथों की लकीरों में
हमारे भविष्य की नींव छिपी है,
उनकी कड़ी मेहनत के कारण
हमें ऊँचाइयों की बुलंदी मिली है ।
ओ मेरे प्यारे पापा जी......!
अब ज़रा तनिक ठहर जाइए,
कामयाबी के शिखर पर हैं हम
अब तो खुशियां मनाइए।
आपके संघर्षों का फल
हम ही आसमान में संजोएँगे,
आपके बिखरे अधूरे सपनों को
हम अपने सपनों में बोएँगे।
