पाँच रुपये का सिक्का
पाँच रुपये का सिक्का
एक दिन सवेरे
घर के बाहर घूमने लगी
मेरे पास था एक पाँच रुपये का सिक्का
मन ने कहा कुछ ना कुछ खरीदो
मस्तिष्क ने कहा," महंगाई बाजार में क्या खरीदोगी?
फिर भी आशा से आंखें इधर-उधर देखने लगीं
रंग-बिरंगीन फूल भेजती बूढ़ी को देखी
" कितने में फूल देंगी?" पूछी
" सिर्फ बीस रुपये "बूढ़ी ने कहा
मौन होकर आगे चली
ताजे अमरूद भरे टोकरी देखी
" कितने में फल देंगे ?"फलवाला से पूछी
" सिर्फ दस रुपये, कितने दूं ?"पूछता फलवाला
सिर हिलाकर आगे चली
अचानक एक आवाज सुनी
"पाँच रुपये,पाँच रुपये"
आवाज आते दिशा की ओर देखी
एक लड़का और उसके हाथ में एक दुनिया
हां ,पाँच रुपये का सिक्का देखकर
मैंने खरीद ली एक अखबार।
