पा जाएँ संसार
पा जाएँ संसार
विचारमग्न इस छोर मैं, तुम चिंतालग्न उस छोर,
करते जुगत कि कैसे पाएं अथाह तरिणी पार
उद्विग्न पवन में नैया डोले, उड़ी विमुख पतवार,
मझधार बीच में सोचे नाविक, कैसे जाऊं पार
जोड़ हाथ नयनों को मूंदे करे ईश्वर का ध्यान,
मन में लो संकल्प तो देते ईश्वर भी वरदान
लिया ठान एकजुट हो, कर साहस
न कायर बन देंगे अपनी जान
फिर मिलकर थामी नौका सांकल,
किया विपदा पर पलटवार,
इक और इक मिल बनें जो ग्यारह
पा जाएँ संसार।
