ओढणा, चारोळी, कविता
ओढणा, चारोळी, कविता
ना मैं लेखिका हूँ !
ना मैं कवियत्री हूँ !
किसी पर कविता करुं!
इतनी तो महान नही हूँ ...
हम मिले एफ़ बी के ज़रिए !
करो एफ़ बी का शुक्रिया !
हर रोज सुबह जगाने आते थे!
कानो में धीरे से कहते थे!
उठो रे बाबा सुबह हो गई!
हमने कहा पहेले रोज, घूमते थे !
उठा,जगाने के चक्कर मैं ,
दोस्त मिला था !
आप में हर रुप दिखते थे ,
फिर भी अन्जाने थे?
अभी तक भूली नहीं वो ,
रोती हुई वीरान रात !
रो रो के दिल का हर,
हाल खोलते थे!
छोड़ेंगे ना साथ हम ,
मरते दम तक कहते थे!
हर हाल मैं दोस्ती निभाएंगे ,
रात रात बात करते थे ,
हौसला बढाने का काम करते थे !
न जाने किसकी नजर ,
लगी हमारे दोस्ती में
फिर से चले गये ,
हम बचपन में !
इतने साल बच्ची बनकर
जीते थे शान से!
पर आपने रोज आ आ के, बढो
मुझे बदल दिये जान से!
हम गर्व महसुस करते,
आप के वादो से!
कुछ पल बात ना होने पर,
लग जाते थे रोने को!
रोते नहीं रे बाबा हम हैं
साथ
नजाने किसकी नजर लगी,
हमारे दोस्तानो में!
क्यों खो गये हमारे सपनो से,
ऎसा क्या गुनाह किया,
हम टूट गये अपनो से!
