ओ फौजी
ओ फौजी
ओ फौजी,
सुना है,
बहुत कठोर होते हो तुम ?
निर्मोही है व्यवहार तुम्हारा।
माँ की बीमारी
पिता की बेबसी
बहन की उदासी
भाई का अकेलापन
दोस्तों की पुकार
सबकुछ दिल में
एक गहरा कुआं
खोद कर दबा लेते हो।
बच्चों की अठखेलियाँ,
तुम अपने जेहन में,
आते ही झटक देते हो।
और अर्धांगिनी,
क्या घुट्टी पिला देते हो उसे ?
जो विरह वेदना की
पीर सहकर
तुम तक उसकी
किरच भी नहीं आने देती।
और
क्या घुट्टी पीकर तुम
पी जाते हो,
ये हलालल वियोग का ?
कैसे तुम्हें
मधुर मिलन के पल
अपने कर्तव्य से नहीं डिगा पाते।
सचमुच
कठोर हो तुम,
धूप, गर्मी, बारिश,
नीरवता, नीरसता,
नितांत सूना मन
मन पटल पर बिखरी यादें।
अंदर जितने बेतरतीब,
बाहर उतने ही
व्यवस्थित होते हो तुम।
आंखों में आए तमाम आंसू,
गाल तक ढलकने से पहले,
पौंछ लेते हो।
क्योंकि
फौजी कमजोर नहीं होता,
हर विपरीत परिस्थितियों में,
मुस्कराहट और जज्बे के साथ
जुटे रहते हो।
देश हित मे,
सुनो फौजी,
तुम्हारी कठोरता को नमन है मेरा।
ये कठोरता आसान नहीं,
कठिन तपस्या करनी होती है।
तन मन वचन का,
लोभ छोड़कर,
तुम्हें समस्त राष्ट्र का नमस्कार है।
ओ फौजी,
मेरे आराध्य हो तुम।
