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DR ARUN KUMAR SHASTRI

Classics

4  

DR ARUN KUMAR SHASTRI

Classics

नज़्म नवेली

नज़्म नवेली

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कवितायेँ लिख देने से भाव कहाँ दिखता है।

मन के कोमल छंदों का अभिसार कहाँ दिखता है।


दबी हुई आशाओं को उनका संसार कहाँ मिलता है।

मैंने जब जब तुमको अपने दिल का हाल सुनाया।


किसी बहाने तुमने मुझको बातों में बहलाया।

तेरे मन में उबल रहा अंगार कहाँ दिंखता है।


कवितायेँ लिख देने से भाव कहाँ दिखता है।

मन के कोमल छंदों का अभिसार कहाँ दिखता है।


डूब रहा है सूरज देखो मेरी इच्छाओं का।

थक न जाऊँ देख प्रिय में इन झूठे वादों से।


रोज रोज की टालमटोल का अंत नहीं मिलता है।

तुझमे मेरा मुझमे तेरा प्यार कहाँ दिखता है।


आशाओं को क्षितिज मिलेगा प्रणय अभी है दूर।

फिर भी प्रेम प्रंसगों का तो रोज कमल खिलता है।


कवितायेँ लिख देने से भाव कहाँ दिखता है।

मन के कोमल छंदों का अभिसार कहाँ दिखता है।

दबी हुई आशाओं को उनका संसार कहाँ मिलता है।


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