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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Classics

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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Classics

नयी प्रेरणा

नयी प्रेरणा

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लो आज कर रहा हूँ

मैं अपनी प्रेरणा का हेर -फेर

न ह्रदय का हेर -फेर

न कल्पना का हेर-फेर

बस मात्र कर रहा हूँ

प्रेरणा का हेर-फेर !


जो प्रेरणा ने मेरे

गीतों में जान फूंक दी

ताल और लय से

पत्थर को मोम कर दी

उसके प्रवल प्रवाह से

सुखमय हुआ मेरा मन

जीवन हुआ निराला

उल्लास और उमंग से

सर मैंने था उठाया !


पर हुआ क्या आज

इस प्रेरणा को ?

जो कुंठित कर चली

संबंध तोड़ चली

उन पुराने स्मृतिओं से ?


लगा बदल गया इतिहास

हो गया खंडहर

प्रेरणा का महल !

बिखर गए रंग महल

शीश महल ढह चले

रंग मिटा बिखरे हुए

ईंट का !


कह रहा है

है भुजाओं में बल

है स्वाभिमान का लय

ह्रदय के तार में ?

जो बनाओ फिर

एक प्रेरणा का

विशाल महल ?


अब तो कोई बाग़ उगाना है

बसना है कोई नया घर

कौन रहेगा इन खंडहरों में

इन परिहासों में

उपरागों में


फिर 'आशा ' को लाकर

माला में पिरोया

नयी प्रेरणा को लिया

पुराने को गिराया !


यह एक बाग लगायेगा

संवारेगा आने वाले कल को

नये गीतों में फूँकेगा प्राण !


इसीलिए

लो आज कर रहा हूँ

मैं अपनी प्रेरणा का

हेर-फेर

न ह्रदय का हेर -फेर

न कल्पना का हेर फेर

बस मात्र कर रहा हूँ

प्रेरणा का हेर-फेर।


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